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सुभाष चंद्र बोस की जीवनी कहानी :-
इतिहास के ऐसे महानायक जिनके “जय हिंद” के नारे हर किसी के जुबान पर होते हैं, जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने वाली फौज आजाद हिंद फौज की कमान संभाली, वह महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी कहानी को कौन नहीं जानना चाहता है |उन्होंने जो देश के लिए किया उसे लोग कभी भूल नहीं पाएंगे |लेकिन उनकी राजनीतिक विरासत पर मौत के रहस्य का पर्दा आज भी बना हुआ है | नेता जी ने हमेशा यही कहा- “दुनिया में सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है |” उन्होंने राष्ट्रवाद को मानव जाति के उच्चतम आदर्शों सत्यम शिवम सुंदरम से प्रेरित है बताया | नेता जी ने- “देश को स्वतंत्रता दी नहीं जाती ली जाती है | ” “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा |” ऐसे जोशीले नारे भी दिए |
आज के इस लेख में हम जानेंगे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी कहानी तथा उनके द्वारा देश की आजादी में दिए गए योगदानो के बारे में |
जन्म तथा प्रारंभिक जीवन :-
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था | उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था, जो कटक शहर के सबसे मशहूर वकील थे | तथा इनकी माता का नाम प्रभावती था | सुभाष चंद्र बोस जी ने कटक के प्रोटेस्टेंट स्कूल से प्राइमरी शिक्षा पूरी की तथा 1909 में उन्होने रिवेन्शा कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिया |
शिक्षा का प्रभाव तथा आईसीएस का सफर :-
1915 में इंटरमीडिएट की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण किया | 1916 में उन्होंने b.a. की पढ़ाई (दर्शनशास्त्र) प्रेसिडेंसी कॉलेज में शुरू की | तभी उस कालेज के छात्रों और अध्यापकों के बीच झगड़ा हो गया | जिसका नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस ने किया | जिसकी वजह से इन्हें 1 साल के लिए कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया तथा साथ-साथ परीक्षा देने पर भी रोक लगा दी गई | बंगाल रेजीमेंट में भर्ती के लिए इन्होंने परीक्षा पास किया परंतु आंखें खराब होने के कारण अयोग्य घोषित कर दिया गया | सन 1919 में बीए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में कोलकाता विश्वविद्यालय में दूसरे स्थान पर रहे | सुभाष चंद जी के पिताजी की इच्छा थी कि वह आईसीएस बने | किंतु उनकी आयु के अनुसार इस परीक्षा में शामिल होने के लिए उनके पास एक ही अवसर था |सुभाष चंद्र बोस जी ने अपने पिता से 24 घंटे का समय मांगा ताकि वह सोच कर निर्णय ले सके कि उन्हें यह परीक्षा देना है या नहीं | पूरी रात इसी बात को लिए सोचते रहे अंत में उन्होंने इस परीक्षा को देने का निर्णय लिया और 15 सितंबर 1919 को हुए इंग्लैंड चले गए | इस परीक्षा की तैयारी के लिए उन्हे लंदन के किसी भी स्कूल में प्रवेश नहीं मिला | किसी तरह उन्हें किड्स विलियम हाल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान की ट्राईपास की परीक्षा का अध्ययन करने हेतु प्रवेश मिल गया | लेकिन उनका असली मकसद तो आईसीएस की परीक्षा करना था | उन्होंने 1920 में आईसीएस की परीक्षा चौथे स्थान प्राप्त किया |
परीक्षा तो पास कर लिया लेकिन उनके विचारों में तो भारत को आजाद कराने के सपने थे अथवा आईसीएस बनकर अंग्रेजों की गुलामी कैसे कर पाते?
“देश भक्ति का जूनून जब सिर पर छा जाता है,
तभी करियर छोड़ के राष्ट्र के सेवा में बड़ा मजा आ जाता है |”
बोस ने 22 अप्रैल 1921 को आईसीएस से त्यागपत्र दे दिया | स्वतंत्रता संग्राम और उनके कार्य सुभाष चंद्र बोस स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास के कार्यों से प्रेरित थे | इंग्लैंड से वापस आने के बाद सुभाष चंद्र बोस जी सबसे पहले मुंबई गए और 20 जुलाई 1921 को गांधीजी और उनकी पहली मुलाकात हुई |बहुत जल्द ही सुभाष चंद्र बोस देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए | 1927 में जब साइमन कमीशन भारत आया तब कांग्रेश ने उसे काले झंडे दिखाए |कोलकाता में सुभाष जी ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया | 26 जनवरी 1931 को जब कोलकाता में सुभाष राष्ट्रध्वज पर फहराकर विधान मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज किया तथा उन्हें जेल में डाल दिया | जब सुभाष जेल में थे तब गांधीजी ने अंग्रेजो सरकार से समझौता किया और सब कैदियों को रिहा करवा दिया |भगत सिंह को फांसी हो जाने के बाद सुभाष चंद्र कांग्रेश तथा गांधीजी के तरीकों तथा कार्यो से नाराज हो गए | सुभाष चंद्र जी कुल 11 बार जेल गए | सबसे पहली बार 16 जुलाई 1921 को 6 महीने के लिए जेल में गए थे |
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की पत्नी कौन थी? :-
सन 1934 में जब सुभाष चंद्र बोस ऑस्ट्रिया अपना इलाज कराने के लिए गए थे | वहीं पर उनका विवाह एमिली शेंकल नामक महिला से हुआ था |
कांग्रेस का हरिपुरा अधिवेशन :-
सन 1929 में कांग्रेस अधिवेशन हरिपुरा में हुआ जिसमें सुभाष चंद्र बोस जी को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया |
कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा क्यों दिया?
1938 में सुभाष चंद्र बोस को गांधी जी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुना था ,लेकिन उनकी कार्यपद्धती समझ में नहीं आई | इसी समय यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध चरम पर था |अतः सुभाष जी चाहते थे इंग्लैंड की इस कठिनाई का लाभ उठाकर स्वतंत्रता संग्राम और तीव्र कर दिया जाए परंतु गांधीजी इससे सहमत नहीं थे | 1939 में सुभाष जी दोबारा से कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहते थे ,लेकिन गांधीजी उन्हें अध्यक्ष पद से हटाना चाहते थे | तथा गांधीजी ने पट्सीटाभि सीतारामैय्या को उनके खिलाफ खड़ा कर दिया |गांधीजी के पूर्ण प्रयास के बाद भी दोबारा से सन 1939 में सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए | पट्सीटाभि सीतारामैय्या की हार को गांधीजी अपनी हार बताया | 29 अप्रैल 1939 को बोस जी परेशान होकर कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया |
फारवर्ड ब्लाक की स्थापना कब हुआ?
सुभाष चंद्र जी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद 3 मई 1939 को फारवर्ड ब्लाक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की |
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सुभाष चंद्र बोस जी का जर्मनी प्रवास :-
अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाने के कारण अंग्रेजों ने सुभाष चंद्र बोस जी को कोलकाता में नजरबंद कर दिया था | किसी तरह सुभाष चंद्र बोस जी अपने भतीजे शिशिर कुमार बोस की सहायता से वहां से भाग निकले | वह अफगानिस्तान और सोवियत संघ होते हुए जर्मनी जा पहुंचे | उस समय जर्मनी में हिटलर के नाजीवाद तथा मुसोलिनी के फासीवाद का समय था | नाजीवाद तथा फासीवाद का निशाना इंग्लैंड था, जिसने पहले विश्व युद्ध के बाद जर्मनी पर एकतरफा समझौता ठोक दिया था | अतः वह सब भी इंग्लैंड से इसका बदला लेना चाहते थे | उसी समय भारत पर भी अंग्रेजों का कब्जा था | अतः बोस जी को हिटलर और मुसोलिनी से मित्रता करके इंग्लैंड के खिलाफ बगावत करने की सूझी | बोस जी का मानना था कि –
“स्वतंत्रा हासिल करने के लिए राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग की भी जरूरत पड़ती है |”
29 मई 1942 को सुभाष जी जर्मनी के सर्वोच्च नेता हिटलर से मिले लेकिन हिटलर ने सुभाष जी को सहायता का कोई ठोस भरोसा नहीं दिया | नेता जी ने 1993 में जर्मनी छोड़ दिया तथा वह वहां से जापान होते हुये सिंगापुर जा पहुचे |
आजाद हिंद फौज का पुनर्गठन :-
4 जुलाई 1943 को सुभाष चन्द्र सिंगापुर पहुच कर कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित “आजाद हिंद फौज” की कमान अपने हाथों में ली | उस समय रासबिहारी बोस आजाद हिंद फौज के नेता थे | बोस जी ने आजाद हिंद फौज का पुनर्गठन किया | महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजीमेंट का भी गठन किया | बोस जी 4 जुलाई 1994 को बर्मा पहुंचे, यहीं पर उन्होंने प्रसिद्ध नारा – “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा “ दिया | 6 जुलाई 1944 को आजाद हिंद रेडियो पर अपने भाषण के माध्यम से गांधीजी को संबोधित करते हुए “राष्ट्रपिता” कहा | उसी समय गांधी जी ने भी बोस जी को “नेताजी” की उपाधि दी |
सुभाष चंद्र बोस जी की मृत्यु कैसे हुई? एक रहस्य :-
हर कोई व्यक्ति यह जानना चाहता है कि सुभाष चंद्र बोस जी की मृत्यु कैसे हुई? वह समय जब द्वितीय विश्व युद्ध जोरों पर था, जापान की युद्ध में हार हो चुकी थी || जापान की हार के बाद सुभाष चंद्र बोस जी ने रूस जाने का निश्चय किया | 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस जी हवाई जहाज से रूस जाने के लिए मंचूरिया जा रहे थे | तभी इसी दौरान विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया तभी से आज तक कोई ठोस प्रमाण नहीं प्राप्त हुआ कि सुभाषचंद्र बोस जी की मृत्यु कैसे हुई ? विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने का कोई ठोस प्रमाण जापान नहीं दे पाया | अतः यह भी हो सकता है कि नेताजी बच गए हो क्योंकि उनके साथ सफर कर रहे लोगों में से कुछ लोग बच गए | मान लिया मृत्यु हो ही गई तो उनके मृत के कोई ठोस प्रमाण क्यों नहीं है? स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने इस घटना की जांच के लिए कई बार आयोग का गठन किया | दोबारा नतीजा यह निकला कि नेताजी की मृत्यु विमान दुर्घटना में ही हुई |1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरे आयोग का गठन किया गया | ताइवान सरकार मुखर्जी आयोग को अपनी रिपोर्ट पेश की और कहा कि 1945 में ताइवान में कोई हवाई जहाज दुर्घटना ही नहीं हुई | मुखर्जी आयोग ने अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को दी और कहा कि विमान दुर्घटना में सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के कोई सबूत नहीं है | अतः भारत सरकार ने इस आयोग की रिपोर्ट को भी अस्वीकार कर दिया | 18 अगस्त को 1945 के दिन नेताजी कहां गुम हो गए उनके आगे का क्या हुआ या भारतीय इतिहासकारों तथा भारतीयों के लिए एक रहस्य बन गया | उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में नेताजी के गुमनामी बाबा के नाम से रहने की बातें सामने आई | जिसमें कहा गया कि बोस जी किसी तरीके से रूस से अफगानिस्तान के रास्ते होते हुए भारत आए और फैजाबाद में बहुत दिनों तक गुमनामी बाबा के नाम से रहे | कई जगहों पर कई तरीके के उनके रहने की दावे पेश किए गए लेकिन उनकी प्रमाणिकता अभी भी संदिग्ध है |
सुभाष चंद्र बोस की जीवनी कहानी से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं | उनके देश प्रेम की भावना तथा उनके राष्ट्र के प्रति जज्बा को भुलाया नहीं जा सकता है |हाल ही में भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि 23 जनवरी को उनके जन्म दिवस के दिन को पराक्रम दिवस के रूप में हर वर्ष मनाया जाएगा |
ना संघर्ष ना तकलीफ,
तो खाक मजा है जीने में,
बड़े-बड़े तूफान थम जाते हैं,
जब आग लगी हो सीने में |
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