आज के इस आर्टिकल में हम जानेगे की अलंकार (Alankar) क्या है?अलंकार के प्रकार और भेद कितने होते है? और हम सब साथ साथ इसके उदाहरण को भी जानेगे | अगर आप इस आर्टिकल को पूरा पढ़ते है तो आपको आपने परीक्षा की तैयारी में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी |
विषय सूची
अलंकार (Alankar)
जिस प्रकार मनुष्य आपनी शोभा (सुन्दरता/आकर्षण) बढ़ाने के लिए आभूषण का प्रयोग करता है ठीक उसी प्रकार काव्य की शोभा बढ़ाने के लिए अलंकार का प्रयोग किया जाता है | अलंकार के प्रयोग से काव्य में आकर्षण बढ़ जाता है और हर व्यक्ति उसे पसंद करता है |
अलंकार का शाब्दिक अर्थ- अलंकार का शाब्दिक अर्थ आभूषण,शोभा,चमत्कार,सौन्दर्य,श्रृंगार आदि होता है |
अलंकार (Alankar) की परिभाषा
जहा किसी काव्य/वाक्य में शब्द या अर्थ के कारण कोई चमत्कार या विशेषता उत्पन्न हो तो वहा पर अलंकार होता है | जैसे- मुख चन्द्र है | अर्थात् मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है | इसमे मुख की तुलना चंद्रमा के सामान की गयी है अतः यहाँ पर अलंकार है | आगे हम अलंकार के बारे में विस्तार से जानेगे और उसके भेद और उदाहरण को समझेंगे |
अलंकार के तत्व / अवयव:-
अलंकार के मुख्य रूप से दो तत्व या अवयव होते है-
- शब्द
- अर्थ
अलंकार में शब्द के रहने से भी विशेषता या चमत्कार उत्पन्न हो सकता है और केवल अर्थ के होने से भी तथा शब्द और अर्थ इन दोनों के होने से भी अलंकार में विशेषता या चमत्कार उत्पन्न हो सकता है |
नोट- किसी भी इंसान को हम आपने शब्दों के माध्यम से ही प्रभावित कर सकते है | आपकी भाषा में अलंकार का प्रयोग रहता है | आप जाने अनजाने में भी ऐसे शब्दों का प्रयोग करते है, जिसमे अलंकार का प्रयोग किया गया होता है | आप जो आपने आम जीवन में गालिओं का प्रयोग करते है उसमे भी अलंकार होता है जो सामने वाले व्यक्ति के ऊपर प्रभाव डालती है |
अलंकार (Alankar) के भेद
अलंकार के मुख्यत तीन भेद होते है जो निम्नलिखित है-
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
- उभयालंकार
नोट्स- हमारे परीक्षा में मुख्य रूप से दो ही प्रकार के (शब्दालंकार और अर्थालंकार) अलंकार (Alankar) पूछे जाते है | लेकिन यहाँ पर आपकी जानकारी के लिए तीनो प्रकार के अलंकारों के बारे में विस्तार से पढेंगे |
शब्दालंकार (shabda alnkar)
जिस अलंकार (Alankar) में शब्दों की महत्ता हो अर्थात शब्दों के कारण चमत्कार उत्पन्न हो वहा पर शब्दालंकार होता है | इनका प्रयोग हम सामान्य कथनों और बात-चीत में करते है | जैसे-
- परदेशी-परदेशी जाना नहीं |
- लैला तुझे लूट लेगी तु लिख के लेले |
- आज ब्लू है पानी पानी |
उपर्युक्त उदाहरण में जो भी शब्द आये है उनका सीधा सा वही अर्थ है न की कोई तीसरा अर्थ निकल रहा है | अतः यहाँ पर शब्दों की महत्वा को दर्शाया गया है इसलिए यहाँ पर शब्दालंकार है |
शब्दालंकार के भेद
शब्दालंकार मुख्यत छ प्रकार का होता है-
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- श्लेष अलंकार
- वक्रोक्ति अलंकार
- प्रश्नालंकार
- वीप्सा
1-अनुप्रास अलंकार-
अनुप्रास का शाब्दिक अर्थ होता है “आवृत्ति“ | जहा पर वर्णों, शब्दों और वाक्यों की आवृत्ति बार बार हो तथा सभी का अर्थ एक सामान हो वहा पर अनुप्रास अलंकार होता है |
उदाहरण-चारुचन्द्र की चंचल किरणे, खेल रही है जल थल में |
दिए गए उदाहरण में च वर्ण की आवृत्ति बार बार हुई है अतः यहाँ अपर अनुप्रास Alankar है |
अनुप्रास के उपभेद-
अनुप्रास अलंकार के मुख्यत निम्नलिखित भेद होते है-
- छेकानुप्रास अलंकार
- वृत्यानुप्रास अलंकार
- लाटानुप्रास अलंकार
- अन्त्यानुप्रास अलंकार
- श्रृत्यानुप्रास अलंकार
(A) छेकानुप्रास अलंकार-
छेकानुप्रास का अर्थ होता है “अलग-अलग वर्ण की समान क्रम में आवृत्ति |” जहा शब्द की समान क्रम (लगातार) से आवृत्ति (बार-बार) इस प्रकार हो कि अलग-अलग वर्ण समान क्रम में आवृत्ति करे वहा पर छेकानुप्रास अलंकार (Alankar) होता है |
उदाहरण- बागे बगिरी में भ्रमर-भरे अजब-अनुराग |
ऊपर दिए गए उदाहरण में- ब,भ और अ – वर्ण लगातार दो बार आया है |
(B) वृत्यानुप्रास अलंकार-
जहा पर एक वर्ण की आवृत्ति अनेको बार हो तथा साथ साथ वृत्त या अर्धवृत्त का निर्माण हो वहा पर वृत्यानुप्रास अलंकार होता है | उदाहरण-
- चारुचन्द्र की चंचल किरणे——-
- तरनि तनुजा तर तमाल——–
- जैसे नम में तारे है तेते तम तारे है—-
दिए गए उदाहरण में एक ही वर्ण की आवृत्ति कई बार हुई है न की दो ही बार |
(C) लाटानुप्रास अलंकार-
लाटा का मतलब होता है दण्ड के सामान | जहा वाक्य या शब्द की आवृत्ति इस प्रकार हो की हर बार एक ही अर्थ निकले वहा पर लाटानुप्रास अलंकार होता है | उदाहरण-
- पूत-कपूत क्यों धन संचय |
पूत-सपूत क्यों धन संचय ||
- रघुपति राघव राजा राम
रघुपति राघव राजा राम ||
- परदेशी-परदेशी जाना नहीं |
(D) अन्त्यानुप्रास अलंकार-
जहा किसी वाक्य या पंक्ति के अंत में तुकांत का प्रयोग हो वहा पर अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है |
उदाहरण –
- लगा दी किसने आकर यह आग
कहा था तू संशय के नाग ||
- मछली जल की रानी है |
जीवन उसका पानी है ||
(E) श्रृत्यानुप्रास अलंकार-
श्रुत्या का मतलब होता है जो सुनने में अच्छा लगे | जहा पर वर्णों की आवृत्ति इस प्रकार से हो जो सुनने में कानो को प्रिय या अच्छा लगे वहा पर श्रृत्यानुप्रास अलंकार होता है |
उदाहरण-
- लैला तुझे लूट लेगी तु लिख के लेले |
- चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को——–
- खिडकियों के खडकने से खडकता है खड़क सिंह |
खड़क सिंह के खड़कने से खड़कती है खिडकिया ||
2-यमक अलंकार-
यमक अलंकार का शाब्दिक अर्थ युग्मक या जोड़ा होता है | जब किसी पंक्ति या वाक्य में शब्द युग्मक या जोड़े के रूप में उपस्थित हो तथा अलग-अलग अर्थ प्रकट करें | जब कोई शब्द बार बार आये लेकिन उनका अर्थ अलग अलग हो तो वहा पर यमक अलंकार होता है |
उदाहरण-
- कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय—–
- सजना है सजना के लिए—–
- जैसे नभ में तारे हैं तेते तुम तारे हो
- काली घटा का घमंड घटा
- तीन बेर खाती है वह तीन बेर खाती है
3- श्लेष अलंकार (Alankar)-
श्लेष का अर्थ होता है चिपका हुआ। जहां कोई शब्द बार-बार आये अर्थात विषम संख्याओं में आवृत्ति करें तथा उस शब्द का अर्थ हर बार अलग अलग हो वहां पर श्लेष अलंकार होता है
उदाहरण-
- रहिमन पानी राखियै. बिन पानी सब सून।
पानी गयै न ऊबरै. मोती मानुष चून ॥
- सुबरन को ढूंढत फिरत कवि. व्यभिचारी चोर।
- मोहब्बत बरसा देना तू सावन आया है।
4- वक्रोक्ति अलंकार-
वक्रोक्ति का अर्थ होता है टेढ़ा कथन | जब किसी बात को घुमा फिरा कर कहा जाता है तो वहां पर वक्रोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण –
- मेरा घर गंगा में है
- महाराणा प्रताप मेवाड़ के शेर थे
- संध्या हो गई है दीपक बुझ गया
5- प्रश्नालंकार-
जहा वाक्य या पंक्ति में प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ साथ प्रश्नवाचक शब्दों जैसे- कब,कैसे,कहाँ,क्या,कौन आदि का प्रयोग किया जाये वहा पर प्रश्नालंकार होता है |
उदाहरण-
6-वीप्स अलंकार-
वीप्स का प्रयोग संबोधन या विस्मयबोधक चिन्ह के साथ किया जाता है | जहा पर आश्चर्य,हर्ष,शोक,ग्लानी आदि का प्रयोग किया गया हो वहा पर वीप्स अलंकार होता है |
उदाहरण-
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अर्थालंकार (Alankar)
अर्थालंकार किसे कहते है?
जहां पर अर्थो की महत्ता के कारण चमत्कार उत्पन्न हो वहा पर अर्थालंकार
होता है | इनका प्रयोग हम मुहावरों और काव्य रचनाओं में करते है |
अर्थालंकार के भेद:-
अर्थालंकार के निम्नलिखित भेद होते है, जिनका वर्णन नीचे विस्तार से किया जा रहा है-
- उपमा अलंकर
- उत्प्रेक्षा अलंकर
- रूपक अलंकर
- अतिश्योक्ति अलंकार
- विरोधाभास अलंकार
- भ्रांतिमान अलंकार
- मानवीकरण अलंकार
- विभावना अलंकार
- विशेषोक्ति अलंकार
- काव्यलिंग अलंकार
- प्रतीप अलंकार
- अत्योक्ति अलंकार
- पुनरुक्ति अलंकार
- दीपक अलंकार
(1)-उपमा अलंकार:-
उपमा का शाब्दिक अर्थ है “तुलना” । जहां उपमान व उपमेय में तुलना हो अथवा जहां किसी एक वस्तु, व्यक्ति, प्राणी का किसी दूसरी वस्तु, व्यक्ति, प्राणी से गुणधर्म, स्वरूप, जाति, आकार, रंग के कारण तुलना बताई जाए वहां उपमा अलंकार (Alankar) होता है।
उपमा अलंकार के अंग:-
उपमा अलंकार के चार अंग है जो निम्नलिखित इस प्रकार से हैं-
- उपमान
- उपमेय
- वाचक शब्द
- साधारण धर्म
(a) उपमान-
जिस से किसी चीज की तुलना की जाए उसे उपमान कहा जाता है। जैसे-प्रकृति |
(b) उपमेय-
जिसकी तुलना किसी से की जाए वह उपमेय होता है |
(c) वाचक शब्द-
जो समानता व तुलना को बताये वह वाचक शब्द होता है |
(d) साधारण धर्म-
जो उपमान व उपमेय में दोनों में विद्यमान होता है वह साधारण धर्म कहलाता है |
उपमा अलंकार के वाचक शब्द– से, सा, सी, सम सामान, सरिस, जैसा, तैसा, कैसा, जैसे वैसे। अगर आपको किसी वाक्य में ऐसे वाचक शब्द दिखे तो आप इससे पहचान सकते है की इस वाक्य में उपमालंकर होगा |
उपर्युक्त चारो को हम एक उदहारण के द्वारा समझेंगे-
उदाहरण-
- मेरा मुख चंद्रमा के समान सुंदर है ।
- पीपर पात सरिस मन डोला ।
- सागर सा गंभीर हृदय मेरा—-
- मेरा मुख चंद्रमा के समान है ।
उपर्युक्त चारो वाक्यों में
उपमेय- ‘मुख’ दो बार आया है (पहले और चौथे वाक्य में) , ‘पीपर’ है |
उपमान- ‘चंद्रमा’ दो बार आया है (पहले और चौथे वाक्य में) , ‘मन’ है |
वाचक शब्द – ‘सरिस’, ‘समान’ दो बार आया है (पहले और चौथे वाक्य में) है |
साधारण धर्म- सुंदर, डोला, हैं।
उपमा अलंकार के प्रकार:-
उपमा अलंकार मुख्यतः दो प्रकार का होता है।
- पूर्णउपमा अलंकार
- लुप्तउपमा अलंकार
पूर्णउपमा अलंकार:-
जिसमें चारों अंग उपमेय, उपमान, वाचक शब्द तथा साधारण धर्म उपस्थित हो वहां पूर्ण उपमा अलंकार होता है।
जैसे- मेरा मुख चंद्रमा के समान सुंदर है | इस उदाहरण में उपमालंकर के चारो अंग दिखाई पढ़ रहे है जैसा की हमने ऊपर के उदहारण में चारो अंगो को बताया है |
लुप्तउपमा अलंकार:-
जिसमें तीन ही अंग दिखे कोई एक अंग छिपा हुआ हो वहां लुप्तउपमा अलंकार होता है |
जैसे- मेरा मुख चंद्रमा के समान है | इसमे कोई भी साधारण धर्म नहीं है |
(2) उत्प्रेक्षा अलंकार:-
उत्प्रेक्षा का अर्थ होता है “संभावना” | जहां उपमान में उपमेय की संभावना व्यक्त हो अथवा जहां किसी एक वस्तु, व्यक्ति, प्राणी, पदार्थ की किसी दूसरी वस्तु, व्यक्ति, पदार्थ, प्राणी में संभावना व्यक्त की जाये वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है |
वाचक शब्द– मनु, जनु, मनो, जनो, मानो, जानो, मनहु, जनहु, चूँकि, ताकि, परंतु, लेकिन, वरन, बल्कि, ज्यो, त्यों, जिससे की, उससे की |
उदाहरण-
सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलौने गात |
मनहु नीलमणि शैल पर, आतप परयो प्रभात ||
(3) रूपक अलंकार:-
रूपक का अर्थ होता है “समानता, अभेद, अभिन्नता “ । जहां उपमान व उपमेय में कोई भिन्नता ना दिखाई दे या उपमेय में उपमान का अभेद अरोप किया जाए | अथवा उपमान की उपमेय से समानता बतलाई जाए वंहा पर रूपक अलंकार होता है |
उदाहरण–
- चरण कमल बंदों हरिराई |
- एक राम घनश्याम ते चातक तुलसीदास |
- मैया मैं तो चंद्र खिलौना लौह्यो |
- पायो जी मैंने प्रेम रतन धन पायो |
- चरण सरोज पखारन लगा |
(4) अतिशयोक्ति अलंकार:-
अतिशयोक्ति का अर्थ है “बढ़ा चढ़ा कर कहना” | जहां किसी वस्तु, व्यक्ति, विषय के बारे में बढ़ा चढ़ाकर वर्णन किया जाए अथवा किसी पदार्थ, प्राणी के गुण और दोषों को बढ़ा चढ़ा कर बताया जाये वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है |
उदाहरण–
- आगे नदियां पड़ी अपार, घोड़ा कैसे जाए पार |
राणा ने सोचा इस पार, तब तक घोड़ा था उस पार ||
- हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आग |
लंका सारी जल गयी, गये निशाचर भाग ||
- चढ़ चेतक तलवार उठा करता था |
भूतल पानी को सिर काट-काट करता था, सफल जवानी को ||
(5) विरोधाभास अलंकार:-
जहां वास्तव में विरोध ना हो केवल विरोध का आभास हो अथवा जहां वाक्य में निषेधात्मक शब्द न, ना, नी, नहीं, मन, मना, वर्जित निषेध का प्रयोग हो वहां पर विरोधाभास अलंकार होता है |
उदाहरण–
- ना खुदा मिला ना विसाले सनम |
- जब मैं आंख लगी, तब सोना आंस लगी |
- ना खुद सोया ना मुझे सोने दिया |
- यहां शोर मत करो |
- यहां गाड़ी खड़ा करना मना है |
- यहां पेशाब करना सख्त मना है |
(6) भ्रांतिमान अलंकार:-
भ्रांतिमान का अर्थ है “भ्रम या भ्रांति” | जहां किसी पंक्ति में, उपमान व उपमेय में, एक वस्तु की दूसरी वस्तु के समान संरचना के कारण, जो भ्रांतियां या भ्रम उत्पन्न होता है उसे भ्रांतिमान अलंकार कहते हैं |
उदाहरण–
- नाक का मोती, अधर की कांति से |
बीज दाड़िम का समझ कर भ्रांति से,
देखकर सहसा हुआ शुक मौन |
सोचता है दूसरा शुक कौन है ||
(7) मानवीकरण अलंकार:-
जंहा पर जड़ पदार्थ में चेतना की अनुभूति, निर्जीव वस्तुओं में सजीवता का वर्णन, मनुष्य का प्रकृति के साथ सम्बन्ध अथवा मानव का अन्य कारकों में रूपांतरण प्रदर्शित हो वहा पर मानवीकरण अलंकार होता है |
उदाहरण–
- सुनो ऐ संगमरमर की दीवारें, आगे नहीं है कुछ भी तुम्हारे |
- जब जब बाहे उठी मेघ की,
धरती का तन-मन ललका है |
जब-जब मै गुजरा पनघट से ,
पनि हारिन का घट छलका है ||
(8) विभावना अलंकार:-
जहां पर बिना कारण के कार्य की उत्पत्ति हो वहां पर विभावना अलंकार (Alankar) होता है |
उदाहरण–
- बिनु पग चलै, सुनै बिनु काना |
कर बिनु करम, करै विधि नाना ||
उपर्युक्ति उदहारण में बिना पैर के चलना, बिना कान के सुनना , बिना हाथ के अलग अलग प्रकार के कामो को करना बताया गया है जो की संभव नहीं है |
(9) विशेषोक्ति अलंकार:-
जिस वाक्य में कारण हो वस्तु कार्य ना करें वहां पर विशेषोक्ति अलंकार होता है |
उदाहरण–
फूलहि फलहि न बेत,
जदपि सुधा बरसहि जलद |
मूरख हृदय न चेत,
जिहि गुरु निलहि विरच सम ||
(10) काव्यलिंग अलंकार:-
जंहा पर किसी सामान्य बात का विशेष व्यक्ति द्वारा समर्थन किया जाये वंहा पर काव्यलिंग अलंकार होता है |
(11) प्रतीप अलंकार:-
जंहा पर उपमेय का उपमान से ज्यादा वर्णन किया जाये वंहा पर प्रतीप अलंकार होता है |
उदाहरण–
अनुकृति न जिसकी हो सकी | ऐसा रूप तूने पाया ||
उपमान खुद सिमट कर उपमेय में समाया ||
उसकी कला का सचमुच | अंतिम निखार हो तुम ||
यदि रूप की है सीमा | सीमा के पार हो तुम ||
(12) अत्योक्ति अलंकार:-
जंहा किसी प्रसिद्ध व्यक्ति, महापुरुष द्वारा कहे गए नारे, लोगों, काव्य की पंक्ति, विशिष्ट कथन दिखाई पड़े वंहा पर अत्योक्ति अलंकार होता है |
उदहारण-
- तुम मुझे खून दो, मै तुझे आजादी दूंगा |
- दिल्ली चलो |
- आराम हराम है |
(13) पुनरुक्ति अलंकार:-
जिस वाक्य में शब्दों के अर्थों द्वारा बार-बार कथन को दोहराया जाये वंहा पर पुनरुक्ति अलंकार होता है |
(14) दीपक अलंकार:-
जंहा पर एक शब्द के अलग- अलग संदर्भो में विशेष अर्थ प्रकट हो वंहा पर दीपक अलंकार (Alankar) होता है |
उदाहरण–
कहत नटत रीझत खिझत,
मिलत, खिलत, लजिजात |
भरे मौन में करत हौं,
नैनन ही सो बात ||
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सर्वनाम | शब्द |
समास | काल |
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