Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay : [जयशंकर प्रसाद की जीवन परिचय]

आज के लेख में हम सब जानेंगे Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay साथ-साथ  उनके साहित्यिक परिचय पर नजर डालेंगे तथा उनकी रचनाओं को स्पष्ट रूप से देखते हुए उनकी भाषा शैली पर कुछ नजर डालेंगे |छायावाद के चारों स्तंभों (प्रसाद, पंत, निराला और बर्मा ) में से एक महाकवि, नाटककार और कहानीकार जयशंकर प्रसाद से शायद ही कोई व्यक्ति अपरिचित हो जयशंकर प्रसाद एक महान उपन्यासकार के साथ-साथ एक कहानीकार और कविता के मूर्धन्य लेखक थे |

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय [Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay]:-

जयशंकर प्रसाद जी का जन्म सन 18 सो 1889 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में सुघनी साहू नाम से प्रसिद्ध एक वैश्य परिवार में हुआ था  | उनके परिवार को सुघनी साहू इसलिए कहा जाता था क्योंकि इनके परिवार में तंबाकू का व्यापार होता था। इनके पिता जी का नाम देवी प्रसाद तथा इनके बड़े भाई का नाम शंभूनाथ था | जब यह छोटे थे तभी ही इनकी माता-पिता की मृत्यु हो गई थी | जिससे इनकी परिवार का सारा भार इनके बड़े भाई शंभूनाथ पर आ गया | उनके बड़े भाई ने इनका एडमिशन पास के एक क्वींस कॉलेज में कराया | कुछ समय बाद इनके बड़े भाई की भी मृत्यु हो गई | जिससे इनके परिवार का सारा भार इन्हीं के ऊपर आ गया | जयशंकर प्रसाद जी ने तीन शादियां की थी | असामयिक तीनों पत्नियों की मृत्यु हो जाने के कारण तथा छोटे भाई की मृत्यु होने के कारण धीरे-धीरे एक कर्जदार होते गए |  बाद में इन्होंने अपनी संपत्ति बेचकर अपने कर्ज के भार को उतारा | उन्होंने अपने जीवन में अपने व्यवसाय पर ध्यान नहीं दिया और पैसों की किल्लत से जीवन भर जूझते रहे | हालत यह बनती गई आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण और इनके परिवार वालों की मृत्यु होने के कारण इन्हे चिंताओं ने अपना गुलाम बना लिया और जयशंकर प्रसाद जी छय रोग के  शिकार हो गए | सन 1937 ईस्वी में 47 वर्ष की आयु में जयशंकर प्रसाद जी स्वर्ग सिधार गए लेकिन इनकी रचनाएं हमें इनके जीवन्त  होने का अहसास देती हैं।

Note- जयंशकर प्रसाद जी के जन्म में मत भेद है कुछ लोग इनके जन्म को 1930 में मानते है लेकिन अधिकतम लोग 1989 ही मानते है |

Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay एक नजर में :-

नाम  जयशंकर प्रसाद 
जन्म  1889 ईस्वी 
जन्म स्थान  काशी (उत्तर प्रदेश )
पिता का नाम  देवी प्रसाद 
बड़े भाई का नाम  शंभूनाथ
प्रवर्तक  छायावाद 
भाषा  भावपूर्ण और विचारात्मक 
शैली  वर्णनात्मक, भावात्मक
मृत्यु  1937 ईस्वी
रचनायें  कामायनी, आँसू, झरना, लहर 

जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय :-

Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay जान लेने के बाद हमें साहित्यिक परिचय जानना बेहद जरुरी होता है | जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक तथा प्रतिनिधि तो थे  ही उसके साथ-साथ यह युग प्रवर्तक, कथाका,र नाटककार केसाथ  साथ एक उपन्यासकार भी थी | बचपन में ही इनके पिता की मृत्यु हो जाने के कारण इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई | घर पर ही इन्होंने बहुत सारे विषयों जैसे- अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू फारसी का अध्ययन किया | जयशंकर प्रसाद एक हसमुख तथा सरल हृदय के व्यक्ति थे | प्रेम तथा सौन्दर्य  इनके काव्य का प्रमुख अंग रहा है किंतु मानवीय संवेदना इनकी कविता का प्राण है | 

जरुर पढ़े- अलंकार किसे कहते हैं | 

जयशंकर प्रसाद जी की प्रमुख रचनाएं:-

प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | महाकवि, सफल नाटककार, उपन्यासकार, कुशल कहानीकार और श्रेष्ठ निबंधकार है | प्रसाद जी की कुछ प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं |

नाटक:-

  • चंद्रगुप्त
  • स्कंदगुप्त
  • अजातशत्रु
  • ध्रुवस्वामिनी
  • विशाख
  • राज्यश्री
  • कामना
  • जन्मेजय का नागयज्ञ
  • करुणालय
  • एक घूंट
  • प्रायश्चित
  • सज्जन | 

कहानी संग्रह:-

  • प्रतिध्वनि
  • छाया
  • इंद्रजाल
  • आकाशदीप 
  • आंधी

काव्य रचनाएं:-

  • कामायनी (महाकाव्य)
  • झरना
  • आंसू
  • लहार
  • महाराणा प्रताप का महत्व
  • कानन कुसुम  आदि आज के प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ हैं |

Note- कामायनी एक महाकाव्य है | जिसमें 15 सर्ग हैं | इसे  छायावादी युग में लिखा गया था |

उपन्यास:-

  • कंकाल
  • तितली
  • इरावती (अपूर्ण)

निबंध संग्रह:-

जयशंकर प्रसाद जी ने एक ही निबंध संग्रह काव्य कला और अन्य निबंध लिखे हैं |

भाषा शैली:-

जयशंकर प्रसाद जी की भाषा शुद्ध, सरस, साहित्यिक और  संस्कृतनिष्ट  खड़ीबोली  है | इनके काव्य में वर्णनात्मक, भावात्मक, अलंकारिक और योगचित्रात्मक शैली देखने को मिलते हैं |

प्रसाद की आंसू कविता की कुछ पंक्तिया दी गयी है-

आंसू

इस करुणा कलित हृदय में
अब विकल रागिनी बजती
क्यों हाहाकार स्वरों में
वेदना असीम गरजती?
मानस सागर के तट पर
क्यों लोल लहर की घातें
कल कल ध्वनि से हैं कहती
कुछ विस्मृत बीती बातें?
आती हैं शून्य क्षितिज से
क्यों लौट प्रतिध्वनि मेरी
टकराती बिलखाती-सी
पगली-सी देती फेरी?
क्यों व्यथित व्योम गंगा-सी
छिटका कर दोनों छोरें
चेतना तरंगिनी मेरी
लेती हैं मृदल हिलोरें?
बस गयी एक बस्ती हैं
स्मृतियों की इसी हृदय में
नक्षत्र लोक फैला है
जैसे इस नील निलय में।
ये सब स्फुलिंग हैं मेरी
इस ज्वालामयी जलन के
कुछ शेष चिह्न हैं केवल
मेरे उस महा मिलन के।…..पूरा पढ़े 

आर्टिकल को पूरा पढ़ने के लिए आप सभी लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद  | आप हिंदी की कुछ और महत्वपूर्ण लेख पढ़ सकते हैं जो कि नीचे दिए गए हैं  |

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